June 18, 2025 7:18 pm

विश्व योग दिवस 21 जून 2025 के उपलक्ष्य में भाग 4 आपके समक्ष, जरूर पढ़ें……

Sarjit Singh

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pm modi

विश्व योग दिवस 21 जून 2025 के उपलक्ष्य में……

विश्व योग दिवस 21 जून 2025 के उपलक्ष्य में भाग 4 आपके समक्ष, जरूर पढ़ें……

                       लेख श्रृंखला - 4

(भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद का अभिन्न अंग योग)         

                    (करो योग,रहो निरोग)


अष्टांग योग -


आज के लेख में हम योग के तृतीय चरण आसन के बारे में जानेंगे।

आसन की परिभाषा


चित्त को स्थिर रखने वाले तथा सुख देने वाले बैठने के प्रकार को आसन कहते हैं। आसन शब्द संस्कृत भाषा के ‘अस’ धातु से बना है जिसके दो अर्थ हैं- पहला है बैठने का स्थान तथा दूसरा शारीरिक अवस्था। पातंजल योगदर्शन में विवृत्त अष्टांगयोग में आसन का स्थान तृतीय है।

आसन के लाभ


योग का हमारे जीवन में अभूतपूर्व योगदान है, यह एक प्राचीन विद्या है जो अब करोड़ों लोगो के दैनिक जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है। योग अत्यंत लाभकारी है, ये आसन सम्पूर्ण शरीर को स्वस्थ रखते हैं। चित्त की स्थिरता, शरीर एवं उसके अंगों की दृढ़ता और कायिक सुख के लिए इस क्रिया का विधान मिलता है, तनाव, चिंता और अवसाद से लड़ने में भी मदद करते हैं। ये आसन आपके शरीर, मन और आत्मा को ध्यान की अवस्था में लाने में भी मदद करेंगे।

आसन का मुख्य उद्देश्य


आसनों का मुख्य उद्देश्य शरीर के मल का नाश करना है। शरीर से मल या दूषित विकारों के नष्ट हो जाने से शरीर व मन में स्थिरता का अविर्भाव होता है। शांति और स्वास्थ्य लाभ मिलता है। शरीर ही मन और बुद्धि की सहायता से आत्मा को संसार के बंधनों से योगाभ्यास द्वारा मुक्त कर सकता है। शरीर बृहत्तर ब्रह्मांड का सूक्ष्म रूप है। अत: शरीर के स्वस्थ रहने पर मन और आत्मा में संतोष मिलता है।

आसन एक वैज्ञानिक पद्धति है। ये हमारे शरीर को स्वच्छ, शुद्ध व सक्रिय रखकर मनुष्य को शारीरिक व मानसिक रूप से सदा स्वस्थ बनाए रखते हैं। केवल आसन ही एक ऐसा व्यायाम है जो हमारे अंदर के शरीर पर प्रभाव डाल सकता है।

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आसन और व्यायाम में अंतर



आसन और अन्य तरह के व्यायामों (जिम/ अखाड़ा) में फर्क है। आसन जहाँ हमारे शरीर की प्रकृति को बनाए रखते हैं वहीं अन्य तरह के व्यायाम इसे बिगाड़ सकते हैं। शरीर के साथ किए गए अतिरिक्त श्रम का परिणाम बॉडी की एक्स्ट्रा एनर्जी को डिस्ट्रॉय करना है।

आसनों के भेद


  1. बैठकर किए जाने वाले आसान:

पद्मासन, वज्रासन, सिद्धासन, मत्स्यासन, वक्रासन, अर्ध-मत्स्येन्द्रासन, गोमुखासन, पश्चिमोत्तनासन, ब्राह्म मुद्रा, उष्ट्रासन, गोमुखासन आदि।

  1. पीठ के बल लेटकर किए जाने वाले आसन:

अर्धहलासन, हलासन, सर्वांगासन, विपरीतकर्णी आसन, पवनमुक्तासन, नौकासन, शवासन आदि।

  1. पेट के बाल लेटकर किए जाने वाले आसन :

मकरासन, धनुरासन, भुजंगासन, शलभासन, विपरीत नौकासन आदि।

4.खड़े होकर किए जाने वाले आसन:


ताड़ासन, वृक्षासन, अर्धचंद्रमासन, अर्धचक्रासन, दो भुज कटिचक्रासन, चक्रासन, पादहस्तासन आदि।

  1. अन्य :

शीर्षासन, मयुरासन, सूर्य नम:स्कार आदि।

आसन के अन्य भेद


(A).पशुवत आसन:
पहले प्रकार के वे आसन जो पशु-पक्षियों के उठने-बैठने और चलने-फिरने के ढंग के आधार पर बनाए गए हैं जैसे-
1.वृश्चिक आसन,
2.भुजंगासन,

  1. मयूरासन,
  2. सिंहासन,
  3. शलभासन,
  4. मत्स्यासन
    7.बकासन
    8.कुक्कुटासन,
    9.मकरासन,
  5. हंसासन,
    11.काकआसन
  6. उष्ट्रासन
    13.कुर्मासन
  7. कपोत्तासन,
  8. मार्जरासन
    16.क्रोंचासन
    17.शशांकासन
    18.तितली आसन
    19.गौमुखासन
  9. गरुड़ासन
  10. खग आसन
    22.चातक आसन,
    23.उल्लुक आसन,
    24.श्वानासन,
  11. अधोमुख श्वानासन,
    26.पार्श्व बकासन,
    27.भद्रासन या गोरक्षासन,
  12. कगासन,
  13. व्याघ्रासन,
  14. एकपाद राजकपोतासन आदि।

(B). वस्तुवत आसन
दूसरी तरह के आसन जो विशेष वस्तुओं के अंतर्गत आते हैं जैसे-
1.हलासन,
2.धनुरासन,
3.आकर्ण अर्ध धनुरासन,

  1. आकर्ण धनुरासन,
  2. चक्रासन या उर्ध्व धनुरासन, 6.वज्रासन,
    7.सुप्त वज्रासन,
    8.नौकासन,
  3. विपरित नौकासन,
    10.दंडासन,
  4. तोलंगासन,
  5. तोलासन,
    13.शिलासन आदि।

(C). प्रकृति आसन
तीसरी तरह के आसन वनस्पति, वृक्ष और प्रकृति के अन्य तत्वों पर आधारित हैं जैसे-
1.वृक्षासन,
2.पद्मासन,
3.लतासन,
4.ताड़ासन
5.पद्म पर्वतासन
6.मंडूकासन,
7.पर्वतासन,
8.अधोमुख वृक्षासन

  1. अनंतासन
    10.चंद्रासन,
    11.अर्ध चंद्रासन
    13.तालाबासन आदि

(D). अंग या अंग मुद्रावत आसन :
चौथी तरह के आसन विशेष अंगों को पुष्ट करने वाले माने जाते हैं जैसे-
1.शीर्षासन,

  1. सर्वांगासन,
    3.पादहस्तासन या उत्तानासन,
  2. अर्ध पादहस्तासन,
    5.विपरीतकर्णी सर्वांगासन,
    6.सलंब सर्वांगासन,
  3. मेरुदंडासन,
    8.एकपादग्रीवासन,
    9.पाद अंगुष्ठासन,
  4. उत्थिष्ठ हस्तपादांगुष्ठासन,
    11.सुप्त पादअंगुष्‍ठासन,
  5. कटिचक्रासन,
  6. द्विपाद विपरित दंडासन,
  7. जानुसिरासन,
    15.जानुहस्तासन
  8. परिवृत्त जानुसिरासन, 17.पार्श्वोत्तानासन,
    18.कर्णपीड़ासन,
  9. बालासन या गर्भासन,
    20.आनंद बालासन,
  10. मलासन,
  11. प्राण मुक्तासन,
    23.शवासन,
  12. हस्तपादासन,
  13. भुजपीड़ासन आदि।

(E). योगीनाम आसन:
पांचवीं तरह के वे आसन हैं जो किसी योगी या भगवान के नाम पर आधारित हैं जैसे-
1.महावीरासन,
2.ध्रुवासन,

  1. हनुमानासन,
    4.मत्स्येंद्रासन,
    5.अर्धमत्स्येंद्रासन,
    6.भैरवासन,
    7.गोरखासन,
    8.ब्रह्ममुद्रा,
    8.भारद्वाजासन,
  2. सिद्धासन,
    11.नटराजासन,
  3. अंजनेयासन
    13.अष्टवक्रासन,
  4. मारिचियासन (मारिच आसन)
    15.वीरासन
  5. वीरभद्रासन
  6. वशिष्ठासन आदि।

(F). अन्य आसन :

  1. स्वस्तिकासन,
  2. पश्चिमोत्तनासन,
    3.सुखासन,
    4.योगमुद्रा,
    5.वक्रासन,
    6.वीरासन,
    7.पवनमुक्तासन,
    8.समकोणासन,
    9.त्रिकोणासन,
    10.वतायनासन,
    11.बंध कोणासन,
    12.कोणासन,
    13.उपविष्ठ कोणासन,
    14.चमत्कारासन,
    15.उत्थिष्ठ पार्श्व कोणासन,
    16.उत्थिष्ठ त्रिकोणासन,
    17.सेतुबंध आसन,
    18.सुप्त बंधकोणासन 19. पासासन आदि।
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