June 21, 2025 4:53 pm

विश्व योग दिवस 21 जून 2025 के उपलक्ष्य में भाग 6 आपके समक्ष……

Sarjit Singh

Sarjit Singh

pm modi

विश्व योग दिवस 21 जून 2025 के उपलक्ष्य में

विश्व योग दिवस 21 जून 2025 के उपलक्ष्य में भाग 6 आपके समक्ष……



                .            लेख श्रृंखला – 6

( भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद का अभिन्न अंग योग)

   (करो योग, रहो निरोग )
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     प्रत्याहार क्या है ?

अष्टांगयोग का पांचवां अंग प्रत्याहार है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार यह पांच योग के बाहरी अंग हैं अर्थात योग में प्रवेश करने की भूमिका मात्र। वासनाओं की ओर जो इंद्रियां निरंतर गमन करती रहती हैं, उनकी इस गति को अपने अंदर ही लौटाकर आत्मा की ओर लगाना या स्थिर रखने का प्रयास करना प्रत्याहार है।

हम आंखों से व्यर्थ के दृष्य देखते रहते हैं, कानों से व्यर्थ की बहस सुनते रहते हैं, जबान से व्यर्थ की बात और भोजन करते रहते हैं, नाक से अनावश्यक सुगंध को सूंघते रहते हैं और मन-मस्तिष्क से व्यर्थ के विचार, चिंता और चिंतन को करते रहते हैं। यह अनावश्यक बह रही ऊर्जा को रोककर सही दिशा में लगाना या बचत करते रहना ही प्रत्याहार है।

हमारी पाँच ज्ञाननेंद्रीया है – आँख, नाक, कान, जीभ और त्वचा। आँख देखती है, कान सुनते हैं, नाक सूँघती है, जीभ स्वाद लेती है और त्वचा से स्पर्श का अनुभव होता है। जब हम उक्त पाँचों इंद्रियों के माध्यम से अपनी इच्छाओं की पूर्ति करते हैं तो इच्छाएँ और बलवान होने लगती है क्योंकि असलियत में इच्छा हमारा मन ही करता है। मन ही देखना, सुनना और स्पर्श करना चाहता है, इंद्रिया तो सिर्फ माध्यम है।

पाँचों इंद्रियों द्वारा व्यक्ति अपनी वासनाओं की पूर्ति करता रहता है। असल में इंद्रियाँ बाहरी नॉलेज का माध्यम होती है जिसके द्वारा हम सुरक्षा और सुविधा से जी सके लेकिन व्यक्ति जब उक्त पाँचों इंद्रियों का दुरुपयोग करना शुरू करता है तो संपूर्ण उर्जा बाहर की ओर बहने लगती है और बार-बार ऐसा करने से शरीर और मस्तिष्क का क्षरण होता रहता है।

उर्जा के बाहरी गमन को रोकर उसे भीतर की ओर मोड़ देना ही प्रत्याहर कहलाता है। प्रत्याहार में हम अपनी इंद्रियों को साधते हैं। अर्थात जब इंद्रियों की जरूरत होती है, तब इनका प्रयोग करते हैं, अन्यथा तो इन्हें शांत रखते हैं।

उर्जा के इस बाहरी गमन को रोकने के लिए सर्वप्रथम मन को साधना होता है क्योंकि ये इंद्रियाँ मन की इच्छा-वासनाएँ पूरी करते-करते कमजोर हो जाती हैं। प्रत्याहार में हम इंद्रियों के स्वामी बनने का प्रयास करते हैं। फिलहाल तो मन और इंदियाँ हमें चलाते हैं, फिर जब हम इसे साधते हैं तो इंद्रियाँ और मन के स्वामी बनकर हम इन्हें चलाते हैं।

काम, क्रोध, लोभ, मोह यह तो मोटे-मोटे नाम हैं, लेकिन व्यक्ति उन कई बाहरी बातों में रत रहता है जो आज के आधुनिक समाज की उपज हैं –  जैसे शराबखोरी, सिनेमा दर्शन और चार्चाएं, अत्यधिक शोरपूर्ण संगीत, अति भोजन जिसमें मांस भक्षण के प्रति आसक्ति, महत्वाकांक्षाओं की अंधी दौड़ और ऐसी अनेक बातें जिससे क‍ि पांचों इंद्रियों पर अधिक भार पड़ता है और अंतत: वह समयपूर्व निढाल हो बीमारियों की चपेट में आ जाती है। आंख रूप को, नाक गंध को, जीभ स्वाद को, कान शब्द को और त्वचा स्पर्श को भोगती है। भोगने की इस वृत्ति की जब अति होती है तो इस सबसे मन में विकार की वृद्धि होती है। ये भोग जैसे-जैसे बढ़ते हैं, इंद्रियां सक्रिय होकर मन को विक्षिप्त करती रहती हैं। मन ज्यादा व्यग्र तथा व्याकुल होने लगता है, जिससे शक्ति का क्षय होता है।

इंद्रियों को विषयों से दूर करने उपाय :
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इंद्रियों को विषयों से दूर करने तथा इंद्रियों के रुख को भीतर की ओर मोड़कर स्थिर रखने के लिए प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। प्राणायाम के अभ्यास से इंद्रियां स्थिर हो जाती हैं। सभी विषय समाप्त हो जाते हैं। अतः प्राणायाम के अभ्यास से प्रत्याहार की स्थिति अपने आप बनने लगती है, दूसरा उपाय है रोज सुबह और शाम पांच से तीस मिनट का ध्यान। इस सबके बावजूद अदि आपके भीतर संकल्प है तो आप संकल्प मात्र से ही प्रत्याहार की स्थिति में हो सकते हैं, हालाँकि प्रत्याहार को साधने के हठयोग में कई तरीके बताए गए हैं। यम, नियम, आसन और प्राणायम को साधने से प्रत्याहार स्वत: ही सध जाता है।

      प्रत्याहार के लाभ
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  यम, नियम, आसन और प्राणायम को साधने से प्रत्याहार स्वत: ही सध जाता है। इसके सधने से व्यक्ति का एनर्जी लेवल बढ़ता है। पवित्रता के कारण ओज में निखार आता है। किसी भी प्रकार के रोग शरीर और मन के पास फटकते तक नहीं हैं।आत्मविश्‍वास, निर्मिकता और विचार क्षमता बढ़ जाती है। जिससे धारणा सिद्धि में सहयोग मिलता है। खासकर यह अनंत में छलाँग लगाने के लिए स्वयं के तैयार होने की स्थिति है

योग के अंतिम 3 चरण – धारणा, ध्यान एवं समाधि है।
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धारणा-
मन को एकाग्रचित्त करके ध्येय विषय पर लगाना पड़ता है। किसी एक विषय का ध्यान में बनाए रखना।

ध्यान-
किसी एक स्थान पर या वस्तु पर निरन्तर मन स्थिर होना ही ध्यान है। जब ध्येय वस्तु का चिन्तन करते हुए चित्त तद्रूप हो जाता है तो उसे ध्यान कहते हैं। पूर्ण ध्यान की स्थिति में किसी अन्य वस्तु का ज्ञान अथवा उसकी स्मृति चित्त में प्रविष्ट नहीं होती।

समाधि-
यह चित्त की वह अवस्था है जिसमें चित्त ध्येय वस्तु के चिंतन में पूरी तरह लीन हो जाता है। योग दर्शन समाधि के द्वारा ही मोक्ष प्राप्ति को संभव मानता है।

धारणा से धैर्य की वृद्धि होती है। ध्यान से अद्भुत चैतन्य शक्ति की प्राप्त होती है तथा समाधि से समस्त शुभाशुभ कर्मों का त्याग होने से मोक्ष प्राप्ति होती है।

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